रूप चतुर्दशी (नरक चौदस)इस दिन धर्मराज चित्रगुप्त व यमराज दोनों का पूजन किया जाता है। इस हेतु चंद्र-दर्शन (अर्थात चंद्रमा के रात्रि में उदित रहने वाली चतुर्दशी के दिन) स्वयं के शरीर में तेल, अभ्यंग, उबटन लगाकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर धर्मराज का यथाशक्ति पूजन कर उनसे नरक के भय से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है।
प्रदोषकाल में तेल का दीपक जलाकर यथाशक्ति पूजन कर यमराज की प्रसन्नता के लिए चौराहे पर, देवालय में अथवा घर
के बाहर उस दीपक को रखा जाता है। यमराज से यह प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से नरक के भय से मुक्ति प्राप्त हो।
दीपावली (कार्तिक-अमावस्या)
कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता है। इस दिन महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए अनुष्ठानपूर्वक पूजन करने का विधान है।
इस क्रम में गणेश, सरस्वती, महाकाली, कुबेर, षोडश मातृका, कलश, नवग्रह पूजन किया जाता है। साथ ही नवीन बही-खाते, लेखनी-दवात, घर-दुकान के प्रमुख द्वार, दीपमाला का भी पूजन किया जाता है।
महालक्ष्मी के विभिन्न आठ अंगों का आठ सिद्धियों की प्राप्ति हेतु पूजन किया जाता है। दीपावली की रात्रि का लक्ष्मी प्राप्ति हेतु विशेष तांत्रोक्त महत्व है। इस दिन संपूर्ण रात्रि जागरण करके 'लक्ष्मी' को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी प्रदाता श्री सूक्त, पुरुष सूक्त, लक्ष्मी सूक्त, विष्णु सहस्रनाम, लक्ष्मी यंत्र पूजन आदि का अपनी आवश्यकतानुसार जाप अथवा हवन किया जाता है। विशेषकर श्रीयंत्र का तंत्रोक्त पूजन किया जाता है। द्वारा :- श्री पं. अशोक पँवार 'मयंक' (hindi.webdunia )
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