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Saturday, March 12, 2011

मेरा शहर

 मुद्दतों बाद लौटा हूं शहर में

यह शहर, जो कभी मेरा था
आज वह एक सपना है

जिन गलियों ने मुझे बडा किया
वे सिमटी - सी नजर आती है
बचपन की यादें मिट्टी - सी नजर आती है
कहां गुम हुई मेरे आंगन की दीवारें
कैसे ढूंढू उन्हें अपनी यादों के सहारे
यहां हर कोई आज अजनबी क्यों है
जो मेरा अपना था, वह गुमशुदा क्यों है
अब तो मकानों के भी यहां नाम हो गए है
रिश्ते मगर सभी यहां गुमनाम हो गए है
इस शहर के लिए हम अनजान हो गए है
नाम रखते हुए भि आज बेनाम हो गये है

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